Friday, November 14, 2025
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ननकट्ठी में 1963 से चल रही परंपरा, 1983 से खड़ा है रावण

39 वर्षों से एक ही शख्स निभा रहा रावण की भूमिका, गांव का रावण बना पहचान का प्रतीक

छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले का सबसे बड़ा गांव ननकट्ठी दशहरा के अवसर पर कुछ ऐसा करता है जो हर किसी के दिल को छू जाता है। यहां दशहरा सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि 60 वर्षों से भी अधिक पुरानी परंपरा है, जो आज भी उतनी ही जीवंत और जोशीली है।

गांव में सन् 1963-64 में पहली बार दशहरे का आयोजन हुआ था। तब से लेकर आज तक यह परंपरा लगातार चली आ रही है – पहले छोटे स्तर पर, फिर धीरे-धीरे गांव के सामूहिक प्रयासों से यह आयोजन क्षेत्र की एक बड़ी पहचान बन गया।

1983 में बना स्थायी रावण — सीमेंट और लोहे से

साल 1983 में गांव ने दशहरे की परंपरा को एक नया रूप दिया। जहां बाकी जगहों पर रावण के पुतले हर साल घास, बांस और कागज़ से बनाए जाते हैं, वहीं ननकट्ठी में पहली बार एक स्थायी रावण का निर्माण हुआ — सीमेंट और लोहे की रॉड से।

इस भव्य रावण की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह बिना किसी भी सहारे के खड़ा है। यह केवल मूर्ति नहीं, बल्कि गांव की सामूहिक सोच, कला और मेहनत का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

गांव की दशहरा परंपरा को लेकर 84 वर्षीय बीएसपी सेवा निवृत्त कर्मी गुहाराम निषाद बताते हैं कि — “करीब 62 वर्ष पहले, यानि सन् 1963 के आसपास, ग्राम ननकट्ठी में पहली बार दशहरा पर्व मनाया गया था। उस समय संसाधन कम थे, लेकिन गांव के लोगों का उत्साह बहुत बड़ा था।”
वहीं, जागृति मानस मंडली के संचालक चेतन दास साहू का कहना है — “जब गांव में दशहरा की शुरुआत हुई थी, तभी से रामलीला का आयोजन भी शुरू हुआ था। तब से लेकर आज तक हम यही कार्य करते आ रहे हैं — परंपरा को जीवित रखने का।”

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39 वर्षों से एक ही शख्स निभा रहा है रावण की भूमिका

गांव के धनसाय साहू दशहरा पर हर साल रावण का किरदार निभाते हैं — और यह सिलसिला आज 39 साल पूरे कर चुका है।
जब वे कक्षा 5वीं में थे, तभी से उन्होंने यह भूमिका निभानी शुरू की थी।
आज उनका रावण बनना गांव की परंपरा का अहम हिस्सा बन चुका है। बच्चे, बड़े, बुजुर्ग — सभी को उनका अभिनय बेहद पसंद आता है।

गांववाले उन्हें गर्व से “रावण” कहते हैं।

राम की शोभायात्रा, रामलीला और छत्तीसगढ़ी नाचा – सब कुछ एक साथ

हर साल दशहरे की शाम भगवान राम की भव्य शोभायात्रा निकलती है, जो बाजार चौक तक जाती है। वहां होती है रामलीला, फिर रावण दहन, और उसके बाद शुरू होता है छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक कार्यक्रम, जिसमें नाचा, गीत-संगीत और गांव की परंपरा मिलकर एक रंगारंग शाम बनाते हैं।

नवयुवक मंडल और जागृति मानस मंडली – परंपरा के असली रक्षक

इस शानदार आयोजन के पीछे है गांव का नवयुवक मंडल, जिसने दशहरा जैसे आयोजन को केवल उत्सव तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे गांव की सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना से जोड़ दिया।

इन्होंने “जागृति मानस मंडली” की स्थापना की, जो आज भी रामलीला और धार्मिक कार्यक्रमों का संचालन करती है। सन् 1994 में गांव विकास समिति का गठन भी हुआ, जिसने आयोजन को और संगठित और भव्य बनाया।

ननकट्ठी का दशहरा – एक परंपरा, एक पहचान, एक प्रेरणा

ननकट्ठी का दशहरा केवल देखने लायक नहीं, बल्कि महसूस करने लायक है।
1963 से चल रही यह परंपरा, और 1983 में बना अनोखा रावण, आज गांव की सांस्कृतिक धरोहर बन चुके हैं।
हर साल यहां का आयोजन यह साबित करता है कि त्योहारों की असली रौनक गांवों में होती है, जहां लोग मिलकर कुछ अलग रचते हैं।

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